फ्रीक ट्रेड से बचने के लिए नया ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज, सेबी और एक्सचेंजेज कर रहे विचार, जानें पूरी बात
Freak Trade: यनमिक ट्रेड एक्सीक्यूशन रेंज बनाते समय फॉर्मूले में कीमतों में उतार चढ़ाव, भाव और लिक्विडिटी जैसे पहले अहम रहेंगे. दरअसल इस पूरे मामले पर नए सिरे से चिंता की वजह 2 जून को निफ्टी ऑप्शंस में हुआ एक गलत सौदा था.
ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज (New trade execution range) की व्यवस्था NSE ने 2014 में शुरु की थी.
ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज (New trade execution range) की व्यवस्था NSE ने 2014 में शुरु की थी.
Freak Trade: फ्रीक ट्रेड यानि गलती से होने वाले सौदों को रोकने के लिए फिर से सौदे करने के लिए भाव का दायरा तय करने पर चर्चा शुरू हो गई है. ज़ी बिजनेस को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सेबी (SEBI) और एक्सचेंजेज के अधिकारी फिर से ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज की व्यवस्था लागू करने पर विचार कर रहे हैं.हालांकि पिछले के मुकाबले प्रस्तावित ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज (New trade execution range) को डायनमिक बनाने की बात हो रही है.ताकि सौदे करते समय ट्रेडर्स को परेशानी भी न हो.और गलती से होने वाले बड़े सौदों को भी टाला जा सके.
नए सिरे से चिंता की वजह
डायनमिक ट्रेड एक्सीक्यूशन रेंज बनाते समय फॉर्मूले में कीमतों में उतार चढ़ाव, भाव और लिक्विडिटी जैसे पहले अहम रहेंगे. दरअसल इस पूरे मामले पर नए सिरे से चिंता की वजह 2 जून को निफ्टी ऑप्शंस में हुआ एक गलत सौदा था. जिसकी वजह से आशंका है कि ट्रेडर को 200 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा.डायनमिक ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज की वजह से भाव के एक रेंज के भीतर ही सौदे किए जा सकेंगे. उससे ज्यादा या कम होने पर सौदा खुद ही अटक जाएगा.इस तरह गलत सौदों (Freak Trade) की आशंका नहीं रहेगी.
ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज की व्यवस्था से कई बार सौदे अटक जाते थे
दरअसल बीते साल अगस्त में NSE ने ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज की व्यवस्था को खत्म करना का फैसला लिया था.क्योंकि इससे कई तरह की दिक्कतें आ रही थीं. ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज की व्यवस्था से कई बार सौदे अटक जाते थे.इसी तरह मार्केट के खुलते समय जिस भाव के आधार पर ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज बनता था वो कई बार हाजिर भाव से काफी दूर होता था.बाद में एक्सचेंज को मैन्युअली रेंज (New trade execution range) में बदलाव करना पड़ता था.ऐसे में ब्रोकर्स की तरफ से भी शिकायत आती थी कि क्यों नहीं पूरी व्यवस्था डिमांड और सप्लाई आधारित की जाए.ताकि ट्रेडर अपना जोखिम समझते हुए सौदे कर सकें.
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— Zee Business (@ZeeBusiness) June 23, 2022
फ्रीक ट्रेड से बचने के लिए नया ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज, SEBI और एक्सचेंजेज के बीच फिर से मुद्दे पर बातचीत..2 जून को निफ्टी ऑप्शंस में फ्रीक ट्रेड होने के बाद से चिंता...
जानिए पूरी खबर हैं ब्रजेश कुमार से...@SEBI_India @BrajeshKMZee @AnilSinghvi_ pic.twitter.com/CB6q4hj21B
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हालांकि शेयर ब्रोकिंग कम्यूनिटी में इस बात को लेकर पूरी सहमति नहीं बन पा रही है.क्योंकि कुछ की राय में सभी को अपना जोखिम समझते हुए सौदों की छूट होनी चाहिए.क्योंकि ब्रोकर इसका बीमा कर अपना जोखिम कवर कर सकते हैं.जबकि अधिकतर की राय में एक गलत सौदा (Freak Trade) पूरे बाजार का मूड खराब कर सकता है जैसा कि साल 2012 में हुआ था.ऐसे में कुछ तो उपाय होना चाहिए.
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कब हुई थी ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज की व्यवस्था शुरू
ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज (New trade execution range) की व्यवस्था NSE ने 2014 में शुरु की थी. बाद में समय समय पर इसमें बदलाव होते रहे. ट्रेड एक्सिक्यूशन रेंज की व्यवस्था खत्म होने के पहले तक कुछ इस तरह से रेंज बनाई जाती थी. जैसे अगर मार्केट ओपेनिंग के समय सिक्योरिटी की अंडरलाइंग प्राइस और ब्याज दरों के स्थानीय मानक माइबॉर के इंटरेस्ट रेट के आधार पर रेंज बनती थी.जबकि चालू मार्केट के समय आखिरी एक मिनट में हुए सौदों के सिंपल एवरेज प्राइस को आधार बनाया जाता था.
06:45 PM IST