Insurance पॉलिसी न होने दें लैप्स, हो सकता है आपको नुकसान, समय पर चुकाएं प्रीमियम
Insurance Policy : इंश्योरेंस कंपनियां प्रीमियम भुगतान के लिए सालाना, छमाही और तिमाही आधार पर भी भुगतान का विकल्प देती हैं. हालांकि विभिन्न कंपनियों की पॉलिसी अलग हो सकती है.
पॉलिसी लैप्स होने से प्रीमियम का भार अधिक हो जाएगा. (रॉयटर्स)
पॉलिसी लैप्स होने से प्रीमियम का भार अधिक हो जाएगा. (रॉयटर्स)
आर्थिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लोग इंश्योरेंस (Insurance) पॉलिसी खरीदते हैं, लेकिन कई बार किसी वजह से समय पर इंश्योरेंस प्रीमियम (Insurance premium) नहीं चुका पाते हैं. नतीजा यह होता है कि उनकी बीमा पॉलिसी लैप्स (Insurance policy lapses) हो जाती है. प्रीमियम चुकाने के कई विकल्प होते हैं. इंश्योरेंस कंपनियां प्रीमियम भुगतान के लिए सालाना, छमाही और तिमाही आधार पर भी भुगतान का विकल्प देती हैं. हालांकि विभिन्न कंपनियों की पॉलिसी अलग हो सकती है. बीमा पॉलिसी में समय पर प्रीमियम भुगतान करना खास मायने रखता है.
पॉलिसी लैप्स होने के नुकसान
जानकारों के मुताबिक, किसी भी इंसान को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि समय रहते वह बीमा का प्रीमियम चुका दे. किसी वजह से इसके लैप्स होने से इसके नुकसान भी हैं. एक तो आपको पेनाल्टी देनी होती है और कुछ खास तरह की पॉलिसी में तो इसका नुकसान ज्यादा हो सकता है. खासकर टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी के लैप्स होने के तो बड़े नुकसान हैं. जानकार कहते हैं कि टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी के लैप्स होने पर आपके परिजनों को आपकी मृत्यु के बाद दावे की राशि पाने में परेशानी आ सकती है. साथ ही अगर आप बाद में पॉलिसी खरीदते हैं तो आपको अधिक भुगतान भी करना होता है.
कब होती है पॉलिसी लैप्स
आम तौर पर कंपनियां प्रीमियम चुकाने के लिए 30 दिनों का अतिरिक्त समय प्रदान करती हैं. आपको निश्चित तारीख पर या अतिरिक्त समय के अन्दर तय प्रीमियम राशि चुका देनी होती है. अगर किसी वजह से आप इस समयसीमा से चूक जाते हैं तो आपकी पॉलिसी लैप्स मानी जाती है. यूलिप (यूनिक लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान) में अगर आप पहले पांच साल तक या लॉक इन पीरियड के दौरान प्रीमियम नहीं चुकाते हैं तो आपकी पॉलिसी लैप्स मानी जाएगी. आपको इससे बीमा लाभ से हाथ धोना पड़ सकता है.
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नई और रिवाइव्ड पॉलिसी
बीमा पॉलिसी को रिवाइव करने के विकल्प मिलते हैं. लेकिन नई और रिवाइव्ड (पुनर्जीवित) इंश्योरेंस पॉलिसी की लागत में अंतर आ जाता है. उदाहरण के लिए अगर कोई 25 साल का इंसान एक टर्म इंश्योरेंस प्लान खरीदता है और सालाना 6,000 रुपए प्रीमियम दो साल तक देता है. यानी वह दो साल में 12,000 रुपए देता है. लेकिन अगले दो साल बाद अगर उसकी पॉलिसी प्रीमियम न चुकाने से लैप्स हो जाती है और अब वह दो साल बाद उसे रिवाइव कराना चाहता है तो बीमा कंपनी उससे रिन्युअल फीस, लेट फीस और ब्याज लेगी और यह राशि करीब 18,000 रुपए हो जाएगी.
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वहीं इंसान जो अब 29 साल का है और वह किसी अन्य बीमा कंपनी से नई पॉलिसी खरीदना चाहता है तो उसे यह महंगा पड़ेगा. अब नई पॉलिसी का सालाना प्रीमियम करीब 8,000 रुपये है. ऐसे में वह पुरानी पॉलिसी के एवज में चुका रहे प्रीमियम की तुलना में 2000 रुपए ज्यादा चुका रहा होगा. यानी पॉलिसी लैप्स होने से उसपर प्रीमियम का भार अधिक हो जाएगा.
03:43 PM IST