बीमा लेने की सारी शर्तें नहीं पढ़ने के आधार पर रद्द नहीं हो सकता क्लेम
उपभोक्ता आयोग का कहना है कि यह उम्मीद करना बेमानी है कि एक आम आदमी किसी बीमा दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए सारी शर्तों को पढ़ता होगा.
आयोग ने यह माना कि बीमा कंपनियों से इलाज का पैसा पाने के लिये स्वास्थ्य बीमा धारक को खूब भाग-दौड़ करनी पड़ती है. (प्रतीकात्मक चित्र)
आयोग ने यह माना कि बीमा कंपनियों से इलाज का पैसा पाने के लिये स्वास्थ्य बीमा धारक को खूब भाग-दौड़ करनी पड़ती है. (प्रतीकात्मक चित्र)
किसी बीमा के एवज में दावा करना और बीमा कंपनी से आसानी से पैसे मिल जाना संयोग सरीखा है. आमतौर पर यह देखा जाता है कि उपभोक्ता को दावे के एवज में पैसे पाने के लिये खूब भाग-दौड़ करनी पड़ती है. किसी बीमा की शर्तें भी बेहद जटिल होती हैं. दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग ने भी उपभोक्ताओं को होने वाली परेशानी को स्वीकार किया है.
आयोग ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा, यह उम्मीद करना बेमानी है कि एक आम आदमी किसी बीमा दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए सारी शर्तों को पढ़ता होगा. आयोग ने कहा कि अधिकांश मौकों पर किसी बीमा पॉलिसी पर हस्ताक्षर करते समय उपभोक्ता के पास किसी शर्त को मना करने का विकल्प नहीं होता है. आयोग ने यह भी माना कि बीमा कंपनियों से इलाज का पैसा पाने के लिये स्वास्थ्य बीमा धारक को खूब भाग-दौड़ करनी पड़ती है.
आयोग ने कहा कि मुख्य तौर पर कोई उपभोक्ता भविष्य में अचानक सामने आने वाली चिकित्सा जरूरतों के लिये स्वास्थ्य बीमा लेता है. ऐसे में यदि बीमा लेते समय कोई धोखाधड़ी नहीं की गई हो तो उसके धारक के दावे का निपटान किया जाना चाहिये.
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आयोग एक बीमाधारक के दावे को पुरानी बीमारी और पेशे की जानकारी नहीं बताने के आधार पर एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा खारिज किए जाने के संबंध में एक मामले की सुनवाई कर रहा था.
फरीदाबाद के वीरपाल नागर ने अपने मृत भाई प्रताप सिंह के बीमा के संबंध में याचिका दायर की थी. याचक ने कंपनी पर अनुचित व्यापार का तरीका अपनाने और सेवा में कोताही बरतने का आरोप लगाया था.
याचक के अनुसार, मृतक सिंह ने पांच दिसंबर, 2008 को 20 साल के लिये एचडीएफसी का 50 लाख रुपये का एक सावधि बीमा लिया था. सिंह के निधन के बाद नॉमिनी नागर ने कंपनी के समक्ष बीमा का दावा किया था. कंपनी ने 19 अप्रैल, 2010 को नागर का दावा खारिज कर दिया था. कंपनी ने पॉलिसी लेने से पहले से ही मृतक को अस्थमा और पक्षाघात की बीमारी तथा पेशे के बारे में जानकारी नहीं देने का हवाला देकर दावा खारिज किया था.
आयोग के सदस्य अनिल श्रीवास्तव ने माना कि दावे को खारिज करने के पीछे कंपनी ने जो आधार दिए हैं वे सही नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘यह उम्मीद करना बेमानी होगा कि एक आम आदमी किसी बीमा दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से पहले उसकी सारी शर्तें पढ़ ले. सामान्यत: यह देखा जाता है कि बीमा कंपनियों से इलाज का खर्च पाने के लिये दावा करने वालों को यहां से वहां दौड़ना पड़ता है.’
आयोग ने कंपनी को दो महीने के भीतर 50 लाख रुपये भुगतान करने का निर्देश दिया. आयोग ने यह भी कहा कि किसी भी बीमारी को पुरानी बीमारी सिर्फ तभी माना जा सकता है यदि बीमाधारक उक्त बीमारी को लेकर कभी अस्पताल में भर्ती हुआ हो या उसे ऑपरेशन (शल्य चिकित्सा) करानी पड़ी हो.
01:45 PM IST