चीन की मार से किसान हलकान, एक्सपोर्ट नहीं होने से औंधे मुंह गिरे लहसुन के दाम
लहसुन के भाव की बात करें तो यहां किसानों को लागत ते दूर मंडी लाने-लेजाने के किरायाभाड़ा भी नहीं मिल रहा है.
लहसुन का निर्यात ही एक विकल्प था जिससे अच्छे दाम मिल जाते थे. लेकिन इस बार यह विकल्प भी बंद हो गया है.
लहसुन का निर्यात ही एक विकल्प था जिससे अच्छे दाम मिल जाते थे. लेकिन इस बार यह विकल्प भी बंद हो गया है.
नीमच (केतन जोशी) : लहसुन के सेहत का खजाना कहा जाता है, लेकिन सेहत के इस खजाने ने इस किसानों की जेब खाली कर दी है. भारत में इस साल लहसुन की बंपर फसल होने से पहले से ही बाजार में लहसुन के दाम गिरे हुए हैं. इसके बाद एक मात्र एक्सपोर्ट से किसानों को जो अच्छे दाम मिलने की उम्मीद थी वह भी टूट गई क्योंकि, चीन में भी लहसुन का बंपर पैदावार हुई है. अच्छी पैदावार के चलते चीन सस्ता और अच्छी क्वॉलिटी का लहसुन आंतरराष्ट्रीय मार्किट में देने लगा. चीन के इस कदम से भारत में लहसुन की डिमांड इंटरनेशनल मार्केट में नहीं उठ रही है. मांग नहीं होने से लहसुन के दाम पिछले पांच सालों के निचले स्तर तक आ गए हैं.
खेतों में लहलाहती लहसुन की फसल को देखकर किसान खुशी मना रहे थे कि इस बार फसल अच्छी हुई तो उनके घरों में खुशियां आएंगी. लेकिन किसान जब अपना लहसुन लेकर मंडी पहुंचे तो उनके सभी असमान धरे के धरे रह गए. मंडियों में लहसुन के ढेर लगे हुए हैं. अच्छी फसल होने से यहां रोज़ाना करीब एक लाख बोरी लहसुन की आमद हो रही है, जबकि खपत सिर्फ 70 हज़ार बोरी की. एक बोरी में अमूमन 30 से 50 किलो लहसुन होता है.
लहसुन का निर्यात ही एक विकल्प था जिससे अच्छे दाम मिल जाते थे. लेकिन इस बार यह विकल्प भी बंद हो गया है. चीन ने अमेरिका, यूरोप, गल्फ, और एशिया में जहां भारत निर्यात करता था वहां, भारत से सस्ते और अच्छी क्वालिटी का अच्छे लहसुन देने लगा है. इससे भारत में खपत से ज्यादा लहसुन पड़ा हुआ है. मंडियों में लहसुन के ढेर होने के कारण इसके दाम भी जमीन पर आ गए हैं. मध्य प्रदेश की नीमच मंडी में लहसुन के दाम 250 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गए हैं.
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नहीं निकली लागत
लहसुन के थोक व्यापारी मनीष शाह ने बताया कि 2016 में लहसुन का कारोबार काफी अच्छा था. तीन साल पहले लहसुन के दाम 7500 रुपये प्रति क्विंटल थे, 2017 में गिरकर 2152 रुपये रह गए और और इस साल तो लहसुन के दाम महज 1300-1400 रुपये प्रति क्विंटल के बीच सिमट कर रह गए हैं. कई बार तो ये दाम 1000 रुपये से भी नीचे आ गए हैं. आलम ये है कि किसानों को उनकी लागत भी नहीं मिल रही है. कुछ किसान तो अपनी फसल को मंडी में यूं ही छोड़कर चले गए. मालवा की मंडियों में लहसुन के भाव की बात करें तो यहां किसानों को लागत ते दूर मंडी लाने-लेजाने के किरायाभाड़ा भी नहीं मिल रहा है.
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एक्सपोर्ट कम हुआ
लहसुन के कारोबारी बताते हैं कि 2017 में भारत ने 18 देशों में 31,811 टन लहसुन एक्सपोर्ट किया था जबकि इस साल महज 6317 का ही निर्यात हुआ है.
बोआई पर होगा असर
लहसुन किसान राजीव बताते हैं कि अब उन्हें अगले साल से कुछ उम्मीद है. क्योंकि इस बार दाम नहीं मिलने से किसान इसकी पैदावार कम करेंगे. पैदावार कम होने से बाजार में लहसुन के दाम बढ़ेंगे और इसका सीधा फायदा उन किसानों को होगा, जो लहसुन की खेती करेंगे.
नीमच में अभी 15,800 क्विंटल लहसुन की आमद हुई है, लेकिन खरीदार कोई नहीं है. केंद्र सरकार ने निर्यात पर कोई छूट भी नहीं दी है. दो महीने का लहसुन अभी गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश की मंडियों में पड़ा है. नई फसल मार्च में आएगी. इस साल बारिश कम होने के कारण पैदावार पर भी असर पड़ेगा. हाल फिलहाल चीन के कारण लहसुन का निर्यात बंद है.
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लहसुन एक्पोर्ट में चीन टॉप पर
2017 में लहसुन के निर्यात बाजार पर नजर दौड़ाएं तो लहसुन के कुल निर्यात में चीन की हिस्सेदारी 69.7 फीसदी रही. चीन ने 2.2 बिलियन डॉलर का लहसुन निर्यात किया था. दूसरे नंबर पर स्पेन रहा. 15 देशों की इस सूची में भारत 13वें स्थान पर था. भारत से कुल 8 मिलियन डॉलर का लहसुन निर्यात हुआ था.
(नीमच से केतन जोशी की विशेष रिपोर्ट)
12:54 PM IST