खेती-किसानी के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा जलवायु परिवर्तन, एग्री सेक्टर की विकास दर में चिंताजनक गिरावट
Climate Change Impact on Agriculture: गेहूं और दालों के रकबे में क्रमश: 3 और 8% की गिरावट आई है, इससे आगे चलकर खाद्य उत्पादन में गिरावट को लेकर चिंता बढ़ गई है.
Climate Change Impact on Agriculture: टिकाऊ कृषि के लिए जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है, क्योंकि इस साल अनियमित मानसून (Monsoon) ने भारत के कृषि उत्पादन को प्रभावित किया, इससे खाद्य मुद्रास्फीति (Food Inflation) में बढ़ोतरी हुई. सरकार को निर्यात पर रोक लगाने जैसे उपाय करने के लिए मजबूर होना पड़ा. खराब मौसम के कारण खरीफ उत्पादन में गिरावट के कारण जुलाई-सितंबर तिमाही में देश के कृषि क्षेत्र (Agri Sector) की विकास दर घटकर मात्र 1.2% रह गई. इसका प्रतिकूल प्रभाव चालू रबी सीजन (Rabi Season) पर पड़ा है और सामान्य से कम मानसून के कारण कुल बोए गए क्षेत्र में 3% से अधिक की गिरावट आई है. मिट्टी में नमी की कमी हो गई है और जलाशयों में पानी का भंडारण कम हो गया है.
गेहूं और दालों के रकबे में क्रमश: 3 और 8% की गिरावट आई है, इससे आगे चलकर खाद्य उत्पादन में गिरावट को लेकर चिंता बढ़ गई है. जलवायु परिवर्तन की इस जटिल घटना से निपटने के लिए गतिशील प्रतिक्रिया रणनीतियों को विकसित करने के लिए नीति निर्माताओं और वैज्ञानिक समुदाय के भीतर अब एक बड़ी चिंता है, खासकर कुछ राज्यों में विशाल क्षेत्र अभी भी वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर हैं.
रबी फसलों का रकबा 648 लाख हेक्टेयर तक पहुंचने का अनुमान
हालांकि, रबी (Rabi) के रकबे में मौजूदा गिरावट के बावजूद, कृषि मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि अगले कुछ हफ्तों में अंतर को संभावित रूप से कम किया जा सकता है. उनका अनुमान है कि रबी फसलों (Rabi Crops) के लिए कुल बोया गया क्षेत्र, पिछले पांच वर्षों के औसत स्तर (648 लाख हेक्टेयर) तक पहुंच सकता है.
तिलहनों का रकबा 1 लाख हेक्टेयर बढ़ा
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अधिकारी दलहन के रकबे में कमी का कारण धान जैसी खरीफ फसलों की देर से कटाई और फसल विविधीकरण की प्रवृत्ति को मानते हैं. इसमें कुछ राहत की बात है कि सरसों (Mustard) और रेपसीड सहित तिलहनों का रकबा इस साल 2022 की तुलना में 1 लाख हेक्टेयर अधिक है, इससे देश के खाद्य तेलों के आयात बिल को कम करने में मदद मिलेगी.
वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि तिलहन पर जोर आत्मनिर्भरता बढ़ाने के रणनीतिक उपायों को दर्शाता है. जबकि मौसम संबंधी बाधाओं के कारण चुनौतियां बनी रहती हैं. कृषि मंत्रालय का संभावित पलटाव का पॉजिटिव आउटलुक कृषि क्षेत्र की लचीलापन पर आधारित है. आगामी सीजन में मजबूत खाद्यान्न उत्पादन हासिल करने के लिए फसल विविधीकरण को संतुलित करना और नमी की कमी को दूर करना महत्वपूर्ण होगा.
इस वर्ष की शुरुआत में लोकसभा में कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया, 2014 के बाद से फसलों के लिए बीजों की 1,888 जलवायु अनुकूल किस्में विकसित की गई हैं. इसके अलावा, सूखे, बाढ़, ठंढ और गर्मी की लहर जैसी चरम मौसम की स्थिति वाले जिलों और क्षेत्रों में कृषक समुदायों के बीच व्यापक रूप से अपनाने के लिए 68 स्थान विशिष्ट जलवायु लचीली प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रदर्शन किया गया है.
भारत के कृषि निर्यात में 4-5 अरब डॉलर गिरावट की उम्मीद
भारत दुनिया में गेहूं (Wheat), चावल (Rice) और चीनी (Sugar) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन बढ़ती घरेलू कीमतों पर लगाम लगाने के लिए इन वस्तुओं के निर्यात को प्रतिबंधित करने के लिए मजबूर किया गया है. देश दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है और एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है. इसलिए, निर्यात पर प्रतिबंध से इन देशों में भोजन की उपलब्धता पर भी असर पड़ा है. इस साल भारत के कृषि निर्यात में 4 अरब डॉलर से 5 अरब डॉलर की गिरावट आने की उम्मीद है.
हालांकि, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी आशावादी हैं. वाणिज्य मंत्रालय (Commerce Ministry) में अतिरिक्त सचिव राजेश अग्रवाल का मानना है कि अन्य कृषि वस्तुओं के निर्यात में बढ़ोतरी से इस साल निर्यात घाटा पूरा हो जाएगा. अग्रवाल ने पत्रकारों से कहा, अगर हम गेहूं और चावल जैसी कृषि वस्तुओं को हटा दें, जिनका निर्यात नियंत्रित है, तो अन्य खाद्य निर्यात 4% से अधिक बढ़ रहा है. उन्होंने कहा, इसलिए, चीनी, गेहूं और चावल पर प्रतिबंध के कारण लगभग 4 अरब डॉलर से 5 अरब डॉलर की कमी के बावजूद, हमें पिछले साल के निर्यात स्तर को पूरा करने में सक्षम होना चाहिए.
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) के आंकड़ों से पता चला है कि इस साल अप्रैल और नवंबर के बीच मांस और डेयरी, अनाज की तैयारी और फलों और सब्जियों के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है. दूसरी ओर, रेटिंग एजेंसी आईसीआरए (ICAR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, खरीफ उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान से पता चलता है कि खाद्यान्न उत्पादन घटकर चार साल के निचले स्तर 148.6 मिलियन टन पर आ गया है, जो पिछले साल के अंतिम अनुमान से 4.6% कम है. यहां तक कि जिन फसलों के बोए गए क्षेत्र में इस वर्ष बढ़ोतरी दर्ज की गई है, उनके उत्पादन में गिरावट देखने की उम्मीद है, इसमें गन्ना (-11.4%), चावल (-3.8%) और मोटे अनाज (-6.5%) शामिल हैं. आईसीआरए की रिपोर्ट में कहा गया है, विशेष रूप से, अधिकांश फसलों के उत्पादन में गिरावट उनके बोए गए क्षेत्र में गिरावट से बड़ी है, जो पैदावार में संकुचन को दर्शाती है.
कमजोर ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने भी रेटिंग फर्म को वर्ष के लिए ट्रैक्टर की बिक्री में 0-2% की बढ़ोतरी के अनुमान में नकारात्मक जोखिम जोड़ने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि पहली छमाही में 3.7% और अक्टूबर और नवंबर के दौरान 0.5% की गिरावट आई है.
बेमौसम बारिश से फसलों को नुकसान
जलवायु परिवर्तन के कारण बेमौसम बारिश भी हुई है इससे फसलों को नुकसान हुआ है. इस वर्ष राज्यों में लगभग 8.68 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र बाढ़ या भारी वर्षा से प्रभावित होने की सूचना है. जून में मानसून (Monsoon) देरी से शुरू हुआ था, इसके बाद जुलाई में अधिक बारिश हुई, उसके बाद अगस्त में कमी हुई और फिर सितंबर में पंजाब और हरियाणा जैसे देश के कुछ हिस्सों में फिर से अधिक बारिश हुई, इससे खड़ी फसल पर असर पड़ा. इसके परिणामस्वरूप सब्जियों, विशेषकर टमाटर (Tomato) और प्याज (Onion) की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई, इससे महंगाई में बढ़ोतरी हुई.
कृषि क्षेत्र (Agri Sector) के आगे बढ़ने पर प्रभाव डालने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण कारक पानी की मात्रा है, जो वर्तमान में देश के अलग-अलग राज्यों के जलाशयों में उपलब्ध है. भारत की लगभग 80% वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान होती है, इससे देश के जलाशय भी भर जाते हैं, जिनका उपयोग अगले कृषि मौसम के दौरान सिंचाई के लिए किया जाता है. इस वर्ष कम वर्षा के कारण, जलाशय में पानी का भंडारण पिछले वर्ष का लगभग 75% बेमौसम बारिश भी होने की सूचना है, जो आगामी रबी सीज़न (Rabi Season) में कृषि उत्पादन को प्रभावित कर सकता है.
01:42 PM IST