ATM कार्ड पर भारतीयों की मुश्किल बढ़ा सकता है अमेरिका, पेमेंट कंपनियों को दिया समर्थन
मास्टर व वीजा कार्ड जैसे पेमेंट सिस्टमों का प्रयोग करने वाले लोगों की मुश्किल अगले सप्ताह से बढ़ सकती है. रिजर्व बैंक ने सभी पेमेंट कंपनियों को भारत में होने वाले लेनदेन का डेटा भारत में रखने के निर्देश दिए हैं. वहीं कंपनियां इसका विरोध कर रही हैं.
भारतीय रिजर्व बैंक ने पेमेंट कंपनियों को 15 अक्टूबर से भारत में लेनदेन का डेटा रखने को कहा हैै (फाइल फोटो )
भारतीय रिजर्व बैंक ने पेमेंट कंपनियों को 15 अक्टूबर से भारत में लेनदेन का डेटा रखने को कहा हैै (फाइल फोटो )
मास्टर व वीजा कार्ड जैसे पेमेंट सिस्टमों का प्रयोग करने वाले लोगों की मुश्किल अगले सप्ताह से बढ़ सकती है. एक तरफ जहां रिजर्व बैंक ने सभी पेमेंट कंपनियों को भारत में होने वाले लेनदेन का डेटा भारत में रखने और इसकी व्यवस्था को बनाने के लिए 15 अक्टूबर तक का समय दिया है वहीं पेमेंट कंपनियां अब तक इसका विरोध कर रही हैं. इन अमेरिकन पेमेंट कंपनियों को ट्रम्प प्रशासन का भी साथ मिला है.
ट्रम्प प्रशासन का मिल रहा सहयोग
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार अमेरिका डेटा लोकलाइजेशन की व्यवस्था का विरोध करता है. अमेरिका डेटा को सीमा में बांधने की बजाए उसके फ्री फ्लो को सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा. गौरतलब है कि भारतीय रिवर्ज बैंक ने सभी पेमेंट कंपनियों को भारत में होने वाले किसी भी लेनदने का डेटा भारत में रखने की बात कही है फिलहाल सभी कंपनियों का लेनदेन का डेटा अमेरिका में स्टोर होता है.
कंपनियों ने कहा बढ़ जाएगा खर्च
ट्रम्प प्रशासन की ओर से कहा गया है कि अमेरिका की ज्यादातर आईअटी कंपनियां भारतीय रिवर्ज बैंक के निर्देशों का विरोध कर रही हैं. कंपनियों का दावा है कि भारत में डेटा रखने के लिए एक तरफ जहां उनका खर्च बढ़ेगा वहीं डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी मुश्किल होगा.
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15 अक्टूबर तक का दिया गया है समय
भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से अप्रैल में सर्कुलर निकाल कर कहा गया था कि मास्टर कार्ड, वीजा जैसी सभी पेमेंट कंपनियां भारत में होने वाले किसी भी लेनदेन का डेटा भारत में ही रखना सुनिश्चित करें. कंपनियों को इस व्यवस्था को लागू करने के लिए 15 अक्टूबर तक का समय दिया गया था.
62 कंपनियों ने आरबीआई के नियम को माना
आरबीआई के नियम के तहत हर पेमेंट कंपनी को पेमेंट सिस्टम से जुड़े डाटा का लोकल स्टोरेज करना अनिवार्य है, जो 16 अक्टूबर से प्रभावी हो जाएगा. भारत में ऐसी 78 पेमेंट कंपनियां काम कर रही हैं, जिनमें 62 ने आरबीआई के नियम को मान लिया है. इनमें अमेजन, व्हाट्सऐप और अलीबाबा जैसी ई कॉमर्स कंपनियां भी शामिल हैं.
आरबीआई और समय देने के मूड में नहीं
जिन 16 कंपनियों ने आरबीआई के नियम को नहीं माना है, उनका कहना है कि भारत में डाटा स्टोरेज सिस्टम से न सिर्फ लागत खर्च बढ़ेगा बल्कि डाटा की सुरक्षा को लेकर भी सवाल खड़े होंगे. उन्होंने आरबीआई से इस समयसीमा को और बढ़ाने की मांग की है. बड़ी और विदेशी पेमेंट कंपनियों ने वित्त मंत्रालय से इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा है. बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक आरबीआई इन कंपनियों को और समय देने के मूड में नहीं है. इन कंपनियों को पहले ही 6 माह का समय दिया जा चुका है.
सरकार ने बनाई थी समिति
सेवानिवृत न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश पर सरकार ने निजी डाटा सुरक्षा विधेयक के मसौदे पर जन-सुझाव मांगा था. सुझाव देने की अंतिम तारीख पहले 10 सितंबर तय की गई थी, जिसे बढ़ाकर 30 सितंबर 2018 कर दिया गया था. डाटा सुरक्षा पर समिति ने अपनी रिपोर्ट जुलाई में केंद्र सरकार को सौंपी थी.
डाटा लोकलाइजेशन से अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा असर
हालांकि विचार मंच ब्राडबैंड इंडिया फोरम (बीआईएफ) का कहना है कि डाटा लोकलाइजेशन अनिवार्य किए जाने से देश की आर्थिक विकास दर पर असर पड़ सकता है, इसलिए सरकार को इसमें उदारता का रुख दिखाना चाहिए. बीआईएफ के अनुसार, डाटा लोकलाइजेशन से लागत का बोझ बढ़ जाएगा, जिससे अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है. विचार मंच ने कहा, 'बीआईएफ सरकार से डाटा सुरक्षा के अंतिम विधेयक में ज्यादा उदारता का रुख दर्शाने पर विचार करने की मांग करता है.'
01:50 PM IST